Saturday, February 4, 2023

एक लोहा पूजा में राखत, एक घर बधिक परों , पारस गुण अवगुण नहीं चितवै, कंचन करत खरौ .

एक लोहा पूजा में राखत, एक घर बधिक परों ।
पारस गुण अवगुण नहीं चितवै, कंचन करत खरौ ।

संत सूरदास जी कहते हैं कि लोहा तो एक है मगर उसको कई जगह इस्तेमाल करते हैं. लोहे से चाक़ू, छुरी, तलवार बनती है और उसी से देवताओं की मूर्ति भी बनती है. छुरी, तलवार आदि कसी, जल्लाद, हत्यारे के पास होती है और दूसरी ओर देवता की मूर्ति की पूजा होती है. मंदिरों में लोहे के त्रिशूल, चक्र आदि चिन्ह रखे जाते हैं. पारस के पास किसी भी किस्म का लोहा चला जाये चाहे कसी की छुरी हो या मंदिर में रखे जाने वाले चिन्ह, पारस दोनों में फर्क नहीं करता, वह दोनों को खरा सोना बना देता है. संत सूरदास जी प्रभु से प्रार्थना करते हुए कहते हैं हे प्रभु आप समदर्शी है आपके पास गुनाहगार भी आते है और पाक – पाकीज़ा भी आते हैं आप सब पर अपनी नज़रे – करम करते हैं और उनका उद्धार करते हैं.

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