अपने जलस्रोतों झीलों -नदियों को कितना प्यार करते हैं ये गोरे ये अहसास एक बार नहीं बार -बार हुआ है। लेक टाहो हो जिस का कुछ हिस्सा केलिफोर्निया राज्य में है तो कुछ नेवाडा में ,या झीलों के साम्राज्य मिशिगन की ग्रेट लेक ,शिकागो की ग्रेट मिशिगन लेक या फिर शिकागो -नदी मज़ाल है कोई गोरा या फिर गंदुमी सैलानी उसके आँचल पे कोई रेपर भी छोड़ दे टॉफी का। पानी इतना स्वच्छ के जहां उथला जल है वहां आप तली में पड़े एक सिक्के को भी देख सकें ,सेंट है या क्वाटर ये नज़ारा मैंने खुद न्याग्रा फाल को केलिफोर्निया राज्य के बुफालो शहर से निहारते हुए देखा है उस शिखर से जहां से पानी ऊंचे झाल से गिरता है और ऊपर से आते गिरते पड़ते एक उद्दाम आवेग ग्रहण कर लेता है।
यहां हमारे लिए सब छूट है धौती निचोड़ो या डुबकी लगाने के बाद लंगोट फिर चाहे वह संगम हो या हर की पौड़ी। मोहनजी पूरी से हलवा पूरी लेके खींचो और पत्तल गंगा में डाल दो।
वहां गोरे झीलों को नदियों को भले पूजते नहीं हैं साफ़ सुथरा बेहद रखते हैं झीलों के तटों को।उनका नागर बोध शीर्ष पे बना रहता है।हम लोग गंगा को ज्यादा प्रेम करते हैं या गंदगी को सहज अनुमेय है हमारा अपना नागर बोध है सिविलिटी है गोरों की अपनी।
ऐसा नहीं है कि शिकागो नदी में फीकल ई -कोलाई बैक्टीरिया नहीं है, है पर उतना नहीं है लोग स्वास्थ्य सचेत हैं यहां नहाते नहीं हैं ना यहां ऐसा करने की अनुमति है। बोर्ड बा -खबर ज़रूर करता है जिसपे लिखा होता है यहां नहाना स्वास्थ्य को नुक्सान पहुंचा सकता है। बस इतना काफी है क़ानून और हिदायतें यहां तोड़ने के लिए नहीं बनते हैं।
हमारे यहां कहते हैं हर क़ानून टूटने के लिए ही बनता है। वो क़ानून ही क्या जिसका अपवाद न हो।
सिंधु नदी के दोनों किनारे का विस्तृत प्रदेश सप्त-सिंधु ही सिन्धुस्तान फिर हिन्दुस्तान कहलाया है। सिंधु से ही हिन्दू और हिन्दू संस्कृति पल्लवित हुई जहां नदी पहाड़ वृक्ष सभी तो पूजित थे।
अब नमामि -गंगे का नाद भले सुनाई देता है फिर भी बनारस के मशहूर अस्सी- घाट पे हरे शैवाल की बढ़वार के अनुकूल तापमान भी है संदूषण भी।पानी तो हरियाला हो ही गया है।
उत्तरकाशी से चलती है एक नदी भागीरथी जो देव प्रयाग में अलकनंदा से मिलकर गंगा बन जाती है। जिसका स्रोत एक ग्लेशियर (हिमनद )रहा है ,यहां गोमुख(गंगोत्री ) से पानी में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा कुदरती तौर पर ज्यादा रहता है जहां से पानी एक उद्दाम आवेग से गिरता है इसीलिए मिथक बना- गंगा जल सड़ता नहीं है इसमें बैक्टीरियोफेज है जो अवांछित जीवाणुओं को चट कर जाता है। जीवाणुभक्षी इसीलिए कहा गया है इसे -ये जिस डाल पे बैठता है उस आश्रयदाता जीवाणु का ही भक्षण कर लेता है।
थी कभी गंगा और भारत की अन्य नदियों में स्वयं शोधन की क्षमता। खा गया इस क्षमता को हमारा रवैया नियम कायदों को ठेंगा दिखाने की ,लाभ पे निगाहें टिकाये रहने की हमारी दृष्टि फिर हम चाहें चमड़ा उद्योग के मालिक हों या भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स के करतार।एटमी बिजलीघर हो या कोयला बिजली। बिजली घर की राख गंगा के वक्ष पे ही कालिख मलती है।कार्बन का डेरा हिमनदों को भी घेरने लगा है।
कहाँ तक बचेगी गंगा अन्य नदियाँ हमारी करतूतों से। हमें अपना रवैया आम औ ख़ास सभी को बदलना होगा। जल से ही हम हैं हमारा बहुलांश भी जल ही है। हमारे दिलोदिमाग में ७३ फीसद और फेफड़ों में ८३ फीसद आवयविक हिस्सेदारी जल की है। चमड़ी में ६४ और गुर्दों में ७९ फीसद आवयविक हिस्सेदार जल ही है। यकीन मानिये अस्थियां ३१ फीसद जल हैं । पंचभूता जल के प्रति ये बे -रूखी बे -दिली कहीं हमारे खुद के प्रति ही तो नहीं हैं।
गोरों से पूछ देखें।ज़वाब मिल जाएगा।
ग्यारह राज्यों के ४० फीसद लोगों के पीने के पानी की गंगाजल के शोधन -संसाधन के बाद आपूर्ति भले गंगा करती आई है लेकिन इस जल स्रोत के ९० -९५ फीसद जल की निकासी तो होती रही है इसका खुद का शोधन और री -चार्जिंग कहाँ होती है ?
उत्तराखंड के उत्तरकाशी से कोलकाता के पास गंगासागर तक इसके किनारे पले बढे शहरों का मलजल खेतों से रिसता रसायन संसिक्तविष कृषि एवं उद्योगिक कचरा ढोते- ढोते गंगा अवसाद की जद में आने लगी है।तटों से दूर भागने लगी है। उथलाने लगी है।
सोच के देखिये कल -बे -नीरा नदियाँ होंगी तो क्या होगा ,कह उठेंगे आप :
ये तेज़ाबी बारिशें बिजली घर की राख ,
एक दिन होगा भूपटल ,वारणावर्त की लाख।
The change in colour of the holy Ganga has been a major concern for the people of Varanasi for few days. (Photo: India Today / Roshan Jaiswal)
ये हाल है गंगा जी के ......
शिकागो नदी का नज़ारा है यहां :देखें निम्न चित्र